अद्य वयं आगामी पाठे अभ्यासं करिष्यामः ॥ एकः अत्र विचारः अपि अस्ति यत् वयं चिन्तयामः संस्कृतं कठिनम् अस्ति ॥ मम निवेदनम् अस्ति नास्ति कापि एतादृशी सरला भाषा ॥ विश्वे अस्यां भाषायां एव प्रचुर ,सम्यक, शिष्ट-प्रयोगयुत सर्वं मिलति ॥ अतः वदन्तु संस्कृतं॥
मम नाम भूपेन्द्रः
पाठ्य- विन्दवः - { अहं , भवान् , भवती }
अहं शिक्षकः
भवान् कः ? { आप कौन ? पुरुष के लिए }
भवती का ? { आप कौन ? स्त्री के लिए }
अभ्यासः
मम पञ्च मित्राणि
भवान् कः ? अहं चिकित्सकः
भवान् कः ? अहं व्यापारी ॥
भवान् कः ? अहं अभियन्ता
भवती का ? अहं लेखिका
भवती का ? अहं रक्षिका
अधुना मम प्रश्नः भवान् कः ? भवती का ?
क्रमशः ..........................
शुभम अस्तु
6 comments:
प्रिय महोदय, अच्छे काम के लिए धन्यवाद
bhupendra ji namsakar
aapne yah bahut hi achha likha hai
mai bhi prayaas karta hun aap use sudharne ka kasht karen
mam nam kapilah sahrma
aham krushakah
kya ye dono vakya sahi hai krupya bataen ka kasht karen mai aapkee prateeksha karunga
kapil singh
मैंने कुछ वाक्य बनाने के प्रयास किये हैं उन्हें सही करने का कष्ट करें
अहम् कपिलः
अहम् व्यवसायी
सः राघवः
सा माला
तत वाहनम
कृपया सही करने का प्रयास करें
मम नाम आशीशः अहम् छात्रः अहम् पठामि
ये वाकया सही हैं क्या
पढ़ो देव भाषा यही कर्म प्रेरक
बनी है हमारे लिए ही जंहाँ में
तू हिन्दू हो मुस्लमान भी हो तो
यही एक भाषा सहायक बनेगी
नहीं जाती इसकी नहीं धर्म इसका
इन्सान रहे वह इन्सान बनकर यही
चाहती यह संस्कृत भाषा
सभी लोग बोलो पढ़ो भी इसी को
तभी तो हमारा मुल्क भी बढ़ेगा
तभी तो हमारा मुल्क भी बढ़ेगा
सरोज खान
भूपेंद्र जी नमस्कार
आपने मुझे अपने इस ब्लॉग के बारे में बताया था तब मैंने सोचा था की ऐसे ही आप कुछ लिखरहे होंगे
परन्तु आपने यंहा पर बहुत ही अच्छा लिख है
आपने मुझे संस्कृत सिखाने के लिए कहा था परन्तु कभी भी आपको समय नहीं मिल पाया है| अब तो इसके माध्यम से हम सभी सिखा सकते हैं आपका यह प्रयास बहुत ही सराहनीय है मुझे कुछ श्लोक संस्कृत के यद् हाँ उन्हें आपको सुनना चाहूँगा
या देवी सर्व भुतेसु शक्ति रूपेण संस्थिता | नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||
आप ऐसे ही कुछ श्लोक भी लिखें यह हमारी इच्छा है |
रमेश सिंह रीवा
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