इसका संकेत नारदीय सूक्त में प्राप्त होता है | तथापि इस विषय में स्पष्ट
उल्लेख प्रश्न-उपनिषद में मिलता है | उसमें कहा गया है - पृथिवी की शक्ति
मनुष्य को खड़ा रखने में अपान वायु की सहायता करती है |
"आदित्यो ह वै ब्रह्मप्राणाः ,उदयत्येष ह्येनं चाक्षुषम प्राण............."प्रश्न३/८
इस पर भाष्य लिखते हुए आदि जगतगुरु शंकराचार्य कहते हैं -"यदि पृथिवी इस शरीर को अपानवायु के द्वारा सहायता न करे तो यह शरीर या तो इस ब्रह्माण्ड में तैरेगा या फिर नीचे गिर जायेगा|
यहाँ स्पष्ट है की आदि गुरु को यह बात अच्छी तरह से मालूम थी और वे इस गुरुत्वाकर्षण शक्ति के बारे में अच्छी तरह से जानते थे | अन्यथा वे इतनी विशद व्याख्या केवल कल्पना के आधार पर कैसे कर सकते थे ? शंकराचार्य का काल ७-९ वीं सदी मना है | तो क्या हम अब भी यह ही कहेंगे
कि न्यूटन ही इस सिद्धांत के प्रतिपादक हैं | यदि हम ऐसा कहते हैं तो यह
अपने ऋषियों और अपने ही ज्ञान का अपमान होगा |
क्रमशः ...........
आप के विचार आमंत्रित हैं